मित्रों मुझे कवियों कथाकारों पत्रकारों के मध्य ज्यादा समय और
चित्रकला / मूर्तिकला के लोगों का मध्य आने और प्राध्यापन की खूबियों
वंचितों की व्यथा ने किस कदर झकझोरा जिसमें साहित्य की
'मनोरंजनकारी' रचनाओं के रस, अलंकार आदि बेमानी और ह्रदय
विदारक लगाने लगे "फूहड़ गीत और खूबसूरत गायक" अनर्थ का उद्धृत
शब्द,भाव,श्रृंगार,भक्ति आदि के चरणों के अभिप्राय नज़र आये मैंने
अपनी गुनगुनाहट को लिपिबद्ध करना शुरू किया, व्योम जी की एक
जापानी महिला मित्र की कार्यशाला ने 'हाइकू' लिखना सिखाया तो मैंने
अपनी कविताओं का संग्रह सीधे अपने ब्लॉग www.kavita-
ratnakar.blogspot.com पर आरम्भ कर दिया मेरे मित्रों की मेरी कुछ
रचनाएँ अच्छी लॉगिन तो कई गोष्ठियों में पढ़वाना शुरू किया, वाह वाह
भी हुआ तालियां भी बजीं, गोष्ठियों की अध्यक्षता तक की नौबत आयी.
शहर में मेरा मज़ाक भी उड़ा, मिश्रा जी ने तो सरे आम कहा की आपने
किसीने बताया की दर्ज़नों कवितायें पढ़ी, उन्होंने तो व्यंग्य के लहज़े में
कहा मैं गंभीर हुआ, मित्रों यहाँ एक पुरानी बात याद आयी जब इस शहर
के जिस बड़े कालेज में मैं ज्वाइन किया था एक लेक्चरर के रूप में
(M.M.H.College Ghaziabad) तो उस समय भी इस तरह के व्यंग
झेले थे जो कालांतर में सम्बल बने।
मुझे उम्मीद है मेरी रचनाएँ त्रुटि से अपूर्ण नहीं होंगी और न कोई अंतिम
उत्कृष्ट रचना ही होंगीं। पर मुझे पूरा भरोसा है की यह रचनाएँ जिस मैं
समाज को देखता हूँ उसका बयां कर रही होंगी ;
डॉ लाल रत्नाकर |
जिंदगी
जिन्दगी जान ले लेती है दिल की उमंग से
हमारे मजहब सोहबत इज्जत और मोहब्बत
सब बेगाने हो जाते हैं वक्त आने जाने के साथ
हमारे अभिमान के आगे भले सब बौने हो जाते हैं
पर हम लौट नहीं सकते अपने अभिमान से आगे
टूट जाते हैं सियासत के दांव पेंच से जज्बे आखिर
आपकी सख्शियत की आग की लौ जल तो रही है
उन्हें पता है उनकी नियत भी बदली हुयी दिख रही है
और स्वाभिमान के आगे वे असहाय खडे दिखते भी हैं
यही कारण है कि वे जीत तो जाते है पर अंदर से नहीं
जो जल रहे होते तो है पर जलते हुए दिखते नहीं और
वे सामने नहीं आते बल्कि पीछे से ही हमलावर होते है
यहीं हम हार जाते है उस दुष्कर्म और उनके दोहरेपन से
अपराध और छल के कौशल से ही सही वो जीत जाते हैं।
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सोहबत
सब कुछ लुटा दिया जो अपना बना लिया
सोहबत का असर है या सोहरत का असर है।
महरबानियों में ये राख हो रहा किसके ढेंर पर
ये बाजार के व्यापारियों की कारस्तानियां ही तो हैं।
जो१ नफरत की आग में वो सबकुछ जला रही है
वो२ आदमी की गैरत को पलीता ही लगा रही हैं.
मनु की किताब को जलाते और जलवाते जाईये
अपनी पीढ़ियों को बाज़ार में चढ़ाते जाईये !
लौटें तो उनकी सोहबत/दौलत पर नज़र मत रखना
सोहबत से लूट जाएँ तो हाहाकार मचाते जाइए .
समाजवाद के ठिकानों को पूंजीवाद ने हड़प लिया
ओबामाओं को आगे बढ़ ज़रा गले लगाते जाईये !
१ (प्रतिस्प्रधा)
२ (आधुनिक शिक्षा)